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महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन: सियासी परिवारवाद के खिलाफ बगावत का शंखनाद

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महाराष्ट्र में बीते दस दिनों से चल रही राजनीतिक उठापटक का बहुप्रतीक्षित अंत मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के रूप में हुआ। सबको पता है कि इस राजनीतिक रवानगी की पटकथा भाजपा ने शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे गुट के साथ मिलकर रची थी। शिंदे और उनके 39 साथियों की शिवसेना से बगावत के पीछे कई कहानियां सुनाई जा रही हैं। इनमें ईडी का दबाव, पैसे का भारी लेन-देन, शिवसेना में ही विधायक व मंत्रियों की उपेक्षा तथा इससे भी बढ़कर सत्ता के लिए पार्टी का हिंदु्त्व विरोधी स्टैंड लेना शामिल है। इनमें से कुछ बातें सच भी हो सकती हैं, क्योंकि महाराष्ट्र का यह महानाट्य दो साल पहले मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथियों की कमलनाथ सरकार से बगावत से कई गुना बड़ा और ज्यादा जटिल था। संयोग से दोनों मामलो में बगावत की बागडोर ‘शिंदे’ के हाथो में ही थी (सिंधिया का वास्तविक सरनेम भी शिंदे ही है)। एकनाथ शिंदे और ज्योदिरादित्य सिंधिया के बगावत में मूल फर्क यह है कि यह विद्रोह न केवल सत्ता में भागीदारी के लिए था बल्कि यह भारतीय राजनीति में लहरा रहे परिवारवाद के खिलाफ भी है।  महाराष्ट्र के निवर्तमान मुख्...